संगी कि चिट्ठी

“दोस्ती चेहरा कि मीठी मुस्कान होत हए ।
दोस्ती सुख दुःख की पहिचान होत हए । ”
प्यारो संगी
गजव सम्झना !

मिर गाँव मे प्राथमिक विद्यालय कक्षा पाँच तक पढाई होत रहए । मिर प्राथमिक शिक्षा गाउँकी सरकारी स्कुल मे भौ । अपन स्कुल मे पढाई पूरी करके दुसरी स्कुल मे पढन जान रहए तव मय कक्षा ५ पास करके मिर पञ्चोदय स्कुलमे पढन जान मन रहय पञ्चोदय धनगढी कि जानिमानि स्कुल रहय और मिर सँग पढनवाले मिर सँगि फिर बाहे स्कुलमे गए पर कुछ करन से पहिले मिर पापा मोके धनगढी उच्च माध्यमिक विद्यालय मे भर्ना कराइदई अपन स्कुलसे गौ मय इकल्लो लौडा रहौ और २÷३ सँग पढनवाली लौडिया रहै ।

बे दिन मय नेग के धनगढी स्कुल पुगत रहौ । मय ज्यादा कोइ से नमस्कत रहौ सायद नयाँ स्कुल, नयाँ मास्टर, नयाँ वातावरण कि कारण होई सकत है । मय सबसे पहिले अपन कक्षामे पुगत रहौ और लास्ट बेन्चमे बैठत रहौ । अग्गु बैठन बहुत डर लागत रहै । मिर confidence बहुत low रहय । झन और सब कहमय जा मास्टर आइसो हय जा उइसो हय । मय त गजब घर्बड़ाजात रहौ ।

कक्षा ६ मे मिर रोल नम्बर ५८ रहय और मिर पछ्छु ५९ रोल नम्बर फिर लौडा रहय, वो फिर नयाँ भर्ना भौ रहय पर वो बहुत हसन, मस्कन वालो रहय और बहुत जल्दी अपनी आसपास कि विद्यार्थीके साथसाथ मास्टरसे घुलमिल हुइजात रहे । वो लौडा कि नाव समर रहै । हम दोनो नया भर्ना भै रहै पर बोके १ महिनामे सब जानत रहै और मोके कोइ ना जानत रहै ।

जब पहिलो त्रैमासिक परिक्षाकि रिजल्ट अओ मिर marks सब विद्यार्थीसे अच्छो अओ । अब सब मास्टर और विद्यार्थी मिर बातचित करन लगे । परिक्षा देन पेति समर मिर पछ्छु बैठत रहे पर हम बात न करत है । पर अब बो मोसे बात करन लगो रहै, और बो इकल्लो नाय सब संगी मोसे बात करन लगे । और अब मिर confidence फिर बढ्गौ रहए । समर अपनि हरकत से हमेसा सबके हासात रहत रहए । अइसि कुछ दिनमे हम बहुत अच्छे सँगि बनिगए और मय लास्ट बेन्चसे तिस्रो, चौथो बेन्चमे बैठन लगो ।

हमर दोस्ती धिरेधिरे गहिरी होत चली गई । पढाईमे हम दोनो कि बहुत competition होत रहए पर मन फिर उइसि मिलत रहए । हमर mutual understanding कुछ इतनो रहय कि हम पढाई या फिर कोई तिस्रो चिजके बिचमे ना लात रहे । टिपिन टाइममे चुँगि चोर और बैडमिन्टन छुट्टिमे फुटबल, क्यारिम खेलत खेलत हमर दिन कट जात रहए । जहे कहिलेओ कि हमर इक आपनि दुनिया रहए । कक्षामे फिर हम दोनो तवकाव रहय सायद तभी कोई टेन्सन नरहए । आइसि करत करत हम २ साल संगै बिताइके ८ क्लासमे पुग्गाए ।

८ क्लासमे फिर हम दानो एकै सेक्सनमे रहए पर सर मोके दुसरो सेक्सन मे पठादै । और हम अलग्गय हुइ गए । पर हम क्लास खतम होतयकि मिलत रहै । सरकारी स्कुल रहै, सायद तभी ज्यादा मास्टर फिर ना आत रहे । घन्टी लागतैकि हम चुँगि चोर खेलन लागत रहै, कि त पढाई कोई प्रश्न पुछन लागत रहै । कभु बो नयाँ प्रश्न लैतो त कभु मय, आइसिमे हम जिल्ला स्तरिय परिक्षा फिर दै दय । कुछ दिन बाद हमर रिजल्ट आइगै । मय प्रथम भौ रहौ और मिर सँगि द्धितिय दोनो बडा खुशी रहएँ ।

फिर बो मोसे कहि यार मय अब गाउ जान डाटो हौ, और बाँकि पढाई उतै करँगो । बो हिना अपन मामा÷माई कि घरमे रहत रहए और अब बोकि मामा कि काठमाडौँ सरुवा हुईगौ । मय बोके रोकन फिर नाभव और बो अपनि गाउ लम्कि चलो गओ । जातै जात बो अपन पापा कि मोबाइल नम्बर दैके गओ और कहि हम एक दुसरे के कभु नभुलंगे । अब मय इकाल्लो हुई गओ रहौ ।

मोके सँगि का चिज है ? अब ऐहसास होन लगो रहए । मिर ठिना मोबाइल न रहे और मय धिरे धिरे पढाइमे बहुत busy हुई गौ । लगभग ४÷५ महिना बाद मय अपन पापासे मोबाइल मागके बोकी पापाके फोन करो । बोकि पापा काममे रहए तभी बो दिन मिर बोसे बात न हुइ पाई ।

फिर कुछ महिना बाद मिर पापा CDMA फोन खरिद दै, फोन त मिर पापा मोके इन्टरनेट चलान तानि खरिदि रहय पर इन्टरनेट बो CDM से नाय चलाएपाओ । बो CDMA मे २००० रुपैयाँ बराबर कि ब्यालेन्स रहय । बो २००० मिर तानि शिवको बरदान हुई गौ । अब मोके बस मोबाइल नम्बर चाहो, मय जौन के फिर फोन कर सकत रहौ । एक दिन साँझके मय अपन समर सँगीके फोन करो ।

मय : हेलो ? कौन मसकत हए ?
उतएसे : तय कौनके ढुंढत हए ?
मय : मय समरके फोन करो रहँओ ।
उतएसे : ए ? मय बोकि पापा हँओ ।
मय : रामराम कक्कु, समर हए ? एक्घरी बात कराइया रहओ मय बोहि धनगढीबालो सँगि अभय हओ ।

एक्घरी पछ्छु समर मस्कत है हेलो ? हमय नमस्के लगभग आधो साल हुइगौ रहै । जब मय बोकि अबाज सुनो मिर दिल कुछ जोडसे धडको, बो पल मय कभु न भुल पाँगो । मिर मन खुशीसे झुमनलागो का मस्कौ का न मस्कौ लागन लागो । मिर मन जिन का का सोचन लागो, बो मोके चिनत हुई है कि भुल गौ हुई हए । मय बोके जितनो miss करो बो फिर मोके उतनो miss करी हुई है कि हवाकी झोँका हानि आ औ और गौ ।
कुछ देर त मय अपनि सोच कि सागरमे डुबकि लागन लगो । फिर मय मस्को हेलो कौन समर ? उतयसे अवाज आत है हँ । मय कहो मय अभय याद है कि भुल गौ । समर कहि तय आँधि तुफान थोडि न है एक घरिमे उडन हानि आबय और चलो जाबय तय त मिर जिन्दगीमे पडो बिजुली हए जब अऔ जिन्दगी भरके तानि दिलमे जगह बनाएलौ । समर कहि सँगि मय तोके गजब mष्कक करत हओ ।

जा बात समर कि मुह से सुनके मिर दिलके icecream खान से फिर जादा ठन्डक मिलो । फिर हमर बात और अग्गु बढी जैसे हालखबर का है, पढाई कैसी है, सँगी तय कितका बडो भौ, सँगी तोके देखन मन लागत है । एैसी एैसी खुब बात करे हम बो दिन । समरसे बात करनसे पहिले मिर CDMA कि रुपैया कभु खतम न हुई हए जैसो लागत रहै पर जौन दिन से बोसे मय बात करन लगो मिर फोन कि रुपैया खतम हुईगै हमय पतय नाचलो हमर बात निभटि नपाइ रहए तव मय रिचार्ज लेन बजार जान पडो ।

भले मय बोसे बात कक्षा ९ कि बिचमे करन लगो रहौ पर बोसे भेट मिर बाहुत दिन बाद कक्षा ११ कि बोर्ड परिक्षा दैके भौ । वो दिन जब मय बोसे मिलो रहो, वो पल मय कभु न भुलङगो । जब मय कक्षा ११ कि परिक्षा दै के काठमाडौंमे बैठो रहो वो अपन मामाघर काठमाडौं घुमन गौ रहए । समरकी काठमाडौं पहिलो यात्रा रहए और बोकि मामाकि घर गोङ्गबु नयाँ बसपार्ककि आसपासकि एरियामे रहए ।

तभी वो मोके अपन सजिलो होन वालो ठाउँमे बुलान सोचि । बो मोके नयाँ बसपार्ककि आकासे पुल उपर जौन पहिले पुगाईगो वो धबष्त करइगो कहि । जब मय बस से उतरो, मिर नजर सिधा आकासे पुलमे गौ, और मय देखो एक पतरोसो पर लम्बो लौडा कोईकि रह देख रहो है । हँ बो समर रहए , जैसे बो मोके पहिचानी और बो मिरघेन आनलागो समर अपन ददाके सँग लैके आऔ रहै । फिर जब मय मिलो तब बोकि ददा चलो गौ, और मय बोके अपन सँग काठमाडौँ घुमन लैचलो गौ । सबसे पहिले हम गै नारायणहिटि दरबार घुमन ।

फिर हम हानुमान ढोका दरबार और बोकि आसपास जैसे घन्टाघर, रानीपोखरी और धरहरा घुमे । हम गजब मस्ती करे, बोके मय हर बो ठाउँके बारेम मजासे वर्णन करत रहो जो मय जानत रहो । गौ त बो काठमाडौं अपन मामाघर रहै पर कुछ दिन इकल्लो वो अपन मामाघर रहो और बाँकि दिन मिर ठिना रहो । हम दिनभर घुमत रहै और रातके पुरानी स्कुलकि बात बातकात रहै ।

हम ८ कक्षाके बाद पहिली बार मिले रहै, खुशी त गजब रहै । मय बोसे हमेसा कहत रहो इक दिन मय हमर कहानि लिखँगो रे । आज समर लम्कीमे अपनी गाउँ कि छोटो सँस्थामे काम करके परिवारकि कर्तव्य पुरा करन डाटो हए और मय हिना बैङ्गलौरमे पढाई पुरा करत हौं । बहुत दिन हुईगै हए सँगी तोसे मिले तभी थोरी याद आइगै और जित्का समेट पाऔ आज लिख्दौ । बिना Girlfriend कि फिर मिर मन बहुत धड्कत हए । सायद मिर ठिन तिर जैसो सँगी जो है miss you सँगी । -रानाथारु

बाँकि दुसराे पत्र मे,
राम राम

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